i201772103 *जे.पी.नड्डा

2014 में मौजूदा सरकार ने भारत की जनता से यह वायदा किया था कि वह उनके स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा करेगी और इस देश के स्त्रियों, पुरूषों और बच्‍चों को अपने जीवन को बचाने और स्‍वस्‍थ जीवन जीने का हर अवसर प्रदान करेगी। उठाये गये प्रमुख कदमों के तहत यथासंभव कई रोगों से अपने बच्‍चों को सुरक्षित करना है। इस संबंध में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिये नये टीके शुरू करना और उन्‍हें हर व्‍यक्ति तक पहुंचाना शामिल है। श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्‍व के तहत जन स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में यह अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण नीतिगत फैसला था। आज मैं विश्‍वास के साथ कह सकता हूं कि यह वायदा पूरा होने की दिशा में अग्रसर है।

कई दशकों से हमारे बच्‍चे ऐसे रोगों के कारण असमय मृत्‍यु को प्राप्‍त हो जाते थे, जिन रोगों को रोका जा सकता था। बाल और शिशु मृत्‍यु को कम करने के लिए नये टीके शुरू किये गये हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिये इनएक्टिवेटेड पोलियो टीका (आईपीवी), पेचिशरोधी रोटावायरस टीका और खसरा व रूबेलारोधी मीजल-रूबेला टीका शुरू किया गया है। निमोनिया के खिलाफ टीका एक नये हथियार के रूप में सामने आया है। इसे न्‍यूमोकोकल कोन्‍जूगेटेड वैक्सिन (पीसीवी) के नाम से जाना जाता है। 130 से अधिक देशों ने बाल टीकाकरण कार्यक्रम के अंग के रूप में पीसीवी को शुरू किया है, जो विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के वैश्विक सुझावों के अनुरूप है। इस टीके से निमोनिया के अत्‍यंत सामान्‍य कारणों के खिलाफ सुरक्षा होती है। यह एक तरह का बैक्‍टीरिया होता है, जिसे न्‍यूमोकोकस कहा जाता है। इस बैक्‍टीरिया से कान में संक्रमण, दिमागी बुखार और रक्‍त संक्रमण जैसे रोग भी हो जाते हैं। इन रोगों से मृत्‍यु हो सकती है या गंभीर विकलांगता की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

यह टीका काफी समय से भारत में निजी क्षेत्र में उपलब्‍ध था। केवल अमीर परिवारों के बच्‍चों को ही यह टीका मिल पाता था, लेकिन आज इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लाने की वजह से हम प्रयास कर रहे हैं कि यह टीका सभी बच्‍चों तक पहुंचे, खासतौर से उन बच्‍चों तक, जो वंचित वर्ग के हैं। जीवन बचाने वाले टीकों की उपलब्‍धता केवल उसी वर्ग तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, जो उसे प्राप्‍त कर सकते हैं। पीसीवी जैसे टीकों के जरिये हम इस देश के नागरिकों को बेहतर भविष्‍य दे सकते हैं और हर नागरिक के जीवन को स्‍वस्‍थ और सकारात्‍मक बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

कई लोग पूछते हैं, ‘टीकाकरण क्‍यों?’  तर्क दिया जाता है कि  पिछली पीढि़यां भी पेचिश, खसरा और निमोनिया से पीडि़त होती थीं; फिर हमारे लिए यह क्‍यों आवश्‍यक है कि हम अपने बच्‍चों को इन रोगों के टीके लगवाएं?  इस आलेख को जब तक आप पूरा पढ़ेगे, तब तक भारत में निमोनिया से एक बच्‍चे की मृत्‍यु हो चुकी होगी। हर तीन मिनट पर एक बच्‍चा – देश में निमोनिया इसी तरह हमला करता है। हमें इन बच्‍चों को बचाने और सुरक्षित करने की जरूरत है।

टीके को वैश्विक प्रतिरक्षा कार्यक्रम (यूआईपी) के रूप में शुरू करना एक सावधानीपूर्वक सोची-समझी और नियोजित और भली-भांति व्‍यवस्थित प्रक्रिया है। टीके की आवश्‍यकता, सुरक्षा और क्षमताओं पर विचार करते हुए यह निर्णय लिया गया है। देश में प्रस्‍तावित किसी भी नये टीके को, प्रतिरक्षा के राष्‍ट्रीय तकनीकी परामर्शदाता समूह (एनटीएजीआई) द्वारा किसी निरोध्‍य रोग के निश्चित टीके के रूप में बीमारी के भार, किसी भी निरोध्‍य रोग के टीके की महामारी विज्ञान, टीके की उपलब्‍धता और इसकी लागत कुशलता के विश्‍लेषण के बाद ही प्रस्‍तावित किया जाता है। एनटीएजीआई इस क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञों के लिए प्रसिद्ध एक स्‍वायत संगठन है। मंत्रालय ने इस नये टीके को एनटीएजीआई की अनुशंसाओं को के लक्ष्‍य परिचालन समूह (एमएसजी) और सशक्‍त कार्यक्रम समिति के अनुमोदन के पश्‍चात ही प्रस्‍तावित किया है।

पीसीवी समेत सभी टीकों को एनटीएजीआई की अनुशंसा के बाद ही यूपीआई में शामिल करके प्रक्रिया को पूरा किया गया है। पीसीवी उन जीवाणुओं से रक्षा करता है जो भारत और पूरे विश्‍व में निमोनिया से होने वाली बच्‍चों की मौतों की अधिकतर संख्‍या का कारण बनते हैं। हम बिहार, उत्‍तर प्रदेश और हिमाचल के कुछ हिस्‍सों में इसकी शुरूवात कर रहे हैं, लेकिन हमारी योजना इसे जल्‍द ही पूरे देश में लागू करने की है। यह एक मंहगा टीका है, लेकिन अब यह हमारे नागरिकों को मुफ्त में उपलब्‍ध हो जाएगा। स्‍वस्‍थ समाज के लिए अतिरिक्‍त आर्थिक लाभों का समायोजन सरकारी कोष की लागत पर किया जाएगा।

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करीब 1.8 लाख मौतों और सालाना 20 लाख से अधिक मामलों के साथ बच्चों में होने वाला निमोनिया भारत पर एक बड़ा वित्तीय बोझ बन गया है। निमोनिया के इलाज में आने वाली लागत गरीबी के चक्र को बनाए रखती है। निमोनिया से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का काफी सारा पैसा अस्पतालों के भारी-भरकम बिल चुकाने में खर्च हो जाता है। अपने बच्चे का इलाज कराने में उनकी कई महीनों की मजदूरी खर्च हो जाती है। यही नहीं, जो वक्त उन्हें अपने कार्य में देना चाहिए, उसे वह अपने बीमार बच्चे की देखभाल करने में लगाते हैं। इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। स्वस्थ बच्चों का अपेक्षाकृत बेहतर ज्ञानात्मक विकास होता है, वह स्कूल में भी अच्छा करते हैं और आगे जाकर जब वह पेशेवर जिंदगी में कार्यबल में शामिल होते हैं, तब वह अधिक उपयोगी साबित होते हैं तथा वह अधिक कमाते हैं। स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने से ही धन आता है। ऐसे कई वैश्विक उदाहरण हैं जहां स्वस्थ जनसंख्या ने अपनी आय बढ़ाई और तेजी के साथ गरीब के कुचक्र से बाहर निकला गया। ऐसे में पीसीवी आर्थिक रूप से विकसित भारत के निर्माण की दिशा में भारत की तरक्की के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। निमोनिया से होने वाली मौतों के मामले में भारत विश्व में सबसे आगे है, पीसीवी की शुरुआत के साथ इन आंकड़ों को बदलने का हमारे पास पूरा अवसर है।

बीते समय में टीकों ने मौतों और बीमारियों को कम करने में काफी योगदान दिया है। चेचक और प्लेग जैसी बीमारियां अब परेशान नहीं करती और भारत अब पोलियो मुक्त भी हो चुका है। अब मातृ और शिशु भी टिटनेस मुक्त होते हैं। भारत के यूआईपी में सरकार के निवेश और प्रतिबद्धता ने इस दिशा में प्रगति में अहम योगदान दिया है। आज यूआईपी के जरिए भारतीय बच्चों को 11 जानलेवा और खतरनाक बीमारियों का टीका उपलब्ध करवाया जा रहा है। पीसीवी के पेश किए जाने से यह आंकड़ा बढ़कर 12 हो गया है। हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत का पूर्ण टीकाकरण कवरेज 62 प्रतिशत है, जो कि करीब एक दशक पहले 43.5 प्रतिशत था। और अधिक टीकों के आने और अधिक कवरेज से शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी आएगी। इस गति में तेजी लाने के लिए वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष भी शुरू किया गया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि वर्ष 2020 तक जीवन रक्षक टीकों तक भारत के 90 प्रतिशत बच्चों की पहुंच हो जाए। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य की समयसीमा घटाकर 2018 कर दी है। इससे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परियोजना की गति शीर्ष पर है। इस बात पर पूरा जोर है कि देश में कोई भी बच्चा इनके लाभ से वंचित न रहे।

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अपने वायदों को पूरा करना और उन हजारों बच्चों की जान बचाना हमारा कर्तव्य है जो कि रोकथाम योग्य बीमारियों के कारण पांच साल भी नहीं जी पाते हैं। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हम इस दिशा में अपने कार्य करने की गति को धीमा नहीं कर सकते। बच्चों को टीके लगाए जाएं ताकि उन्हें जानलेवा बीमारियों से पूरी तरह सुरक्षा मिल सके।